भैया, नयका जमाना का छोकरा छोकरी लोग, जो दूसरे स्टेट में जाके पढ़ता है या नौकरी करता है… वो किसी के सामने खुल के नही बोलते की वो बिहार से है। अब कुछ लोग ई कहेंगे कि अपना स्टेट, जैसा भी हो, गर्व होना चाहिए। कोई त ई ज्ञान छाटेंगे की बिहारी होने में कैसा लाज। ई वही लोग हैं जो अभी तक उस ज़िल्लत का सामान नही किये… जो एक बिहारी होने के कारण झेलना पड़ता है। हम ई नही कहते कि हमे बिहारी होने पे शर्म आनी चाहिए … बिहार में जन्म लेना तो सिर्फ भाग्यशाली लोगो को नसीब होता है। शानदार इतिहास और भूगोल तो सबको मुहजबानी याद है… लेकिन किसमे इतना हिम्मत है कि उस गर्व और शान को ढो सके।
जो शान से अपनी बिहारी वाली पहचान जगजाहिर करते है… बहुत सही और जो नही करते उसके कुछ कारण हम यहाँ बताते है। भाईसाब, कुछ तो कारण है…. बाहर रह के पढ़ने वाले और काम करने वाले लोग कोई बुरबक नही है। स्वयं का ज्ञान है उनको।
1. शिक्षा से खिलवाड़
शिक्षा किसी भी समाज के आगे बढ़ने के लिए सबसे बड़ी जरूरत है। लेकिन हमारे यहाँ… जानते है कि नही…लड़के पढ़ते है सरकारी नौकरी के लिए और लड़कियां पढ़ती है बियाह करे ख़ातिर। सभ्य बनने के लिए, अच्छा इंसान बनने के लिए शिक्षा की अहमियत बताइयेगा तो मुँह पे हँस के जायँगे लोग। चीटिंग करना एक कला माना जाता है और इसमें घर वाले से लेके ट्यूशन वाले मास्टर साहब भी अपना पूरा योगदान देते है। असल मे चीटिंग करने में महारत हासिल है तो आप टॉपर बन सकते है। इसमे उस विद्यार्थी का दोष नही है बल्कि पूरा समाज जिम्मेदार है इसके लिए।
2. राज्य में उद्योग की कमी
देश के लगभग सब कोने में बिहारी है और हँसी की बात तो ये है कि हम बड़े गर्व से डींगें हाँकते है कि ‘बिहारी त पूरा देश मे छा गइल बा’। लेकिन बिहारी जहाँ है अधिकतर तो दिहाड़ी पे काम करने वाले है और दिन रात मालिक की गालियां सुनते है। आलम ये है कि किसी राज्य में किसी नेता को राजनीति में
अपना कैरियर बनाना हो तो बिहारियों को टारगेट करना रणनीति में शामिल होता है। भैया किसी को शौक नही है गाली और मार खाने का। लेकिन कोई करे तो क्या करे। घर मे बुड्ढा माँ बाप का देखभाल, बहन की शादी, बच्चो की पढ़ाई… इन सब के लिए पैसा लगता है।उसके लिए काम करना पड़ेगा जो बिहार में नही है। हमारे प्यारे राजनेता अपनी कुर्सी बचाएंगे की उद्योग बैठाएंगे। और राजनेता तो हम सरनेम देखके चुनते हैं… भले वो कम से कम अपनी जाती के लिए भी कुछ ना करे।
3. अपने राज्य का तत्कालीन इतिहास
नब्बे के दशक में बिहार में शाम 5 बजे के बाद घर से निकलने में डर लगता था। दिन में भी कही जाते थे तो भी घर वाले चिंता में रहते थे। का कानून और का कानून के रखवाले …बिहारी जनता के लिए ऐसा कुछ था ही नही। मर्डर, अपहरण, छिनतई …अखबारों में जगह नही होता था। देश के हर अखबार में रोज़, बिहार में घटने वाले अपराधों की खबर मसाला मार के छापी जाती थी। अगर फ़िल्म में कोई बिहारी किरदार होता था तो वो अपराधी ही होगा। ऐसा इमेज बनाया था हमारे लॉ मेकर्स ने… हमारे बिहार का पूरे देश के सामने।
अब आप ही बताइए, अनपढ़ मतलब बिहारी, काम के लिए भीख मांगने वाला मतलब बिहारी, अपराधी मतलब बिहारी… आप अपने आप को बिहारी बोलोगे तो सामने वाले को बिहारी नही… अनपढ, भिखारी, अपराधी जैसी गालियाँ सुनाई देती है। अब उनके संकीर्ण माथे में कौन घुसाए की एक बिहारी के जैसा दिमाग, जिगरा, बहादुरी और दोस्त मिलना बहुत कम लोगो को नसीब होता है।
सच्चाई तो ई है कि हम थेथर हो गए है ये सब सुन सुनके, अब टाइम है और जिम्मेदारी है हमारी… की ये सब बुराइयां निकाल फेंके। सही नायक चुने, जो हमारे राज्य में रोजगार और शिक्षा दोनो में सुधार कर सके।